बिहार के संस्कृत के विरासत के अंदर झांक के देखे तो बिहार के धरती पर अनेक सारे कहानी और अनमोल चीज हैं जिसमें से एक मधुबनी की पेंटिंग है तो चलिए मधुबनी चित्रकला के बारे में जानते हैं
मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र जैसे बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला है। प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है।
मधुबनी चित्रकला को देखेंगे तो यह बिहार का एक ऐसा धरोहर है जिसके नाम से ही चित्रकला है मधुबनी चित्रकला जो कि यह प्राकृतिक कलर और हाथों की उंगलियों से भी बनाएं जाता है इसमें कम से कम बरस या अन्य चीजों का प्रयोग किया जाता है जो किसी मधुबनी चित्रकला में ही आपको देखने को मिलेंगे यह बिहार की एक ऐतिहासिक संस्कृति कला है इस कला की बात करें तो इस चित्रकला का प्रथम वर्णन श्रृंगार रस के कवि मैथिली के कवि विद्यापति के एक रचना है जिसका नाम कृति प्रथा मैं सबसे पहले इसका वर्णन का साक्ष्य प्राप्त हुआ था कीर्ति पताका में ही इसका वर्णन की ऐसी कोई चित्रकला है जिनको बिहार के मधुबनी जिले के नाम से जाना जाता है मधुबनी चित्रकला अगर इस चित्रकला को बारीक से आप देखते हैं तो वह आपको इसके बहुत सारे विशेषताएं नजर आएंगे यही मधुबनी चित्रकला के सबसे बड़ी विशेषताएं होती है इस कला में रंग की बात करें तो इसमें लाल हरा बेगानी मौसम में सारंगी और केसरी रंग हरा रंग जैसे कई प्रकार के प्राकृतिक रंग का प्रयोग होता है क्योंकि इसे हाथों से ही बनाया जाता है तो इस नेचुरल कलर से बहुत ज्यादा पेंटिंग को अच्छा दिखता है इसीलिए ज्यादातर इसमें प्राकृतिक रंग का ही प्रयोग होता है और हाथों का ही प्रयोग होता है क्योंकि इसमें ज्यादातर घरों के अंदर बनाया जाता है या घरों के बाद सजावट के लिए जैसे इस चित्रकला में विभिन्न चित्रकला सजावट जैसे विभिन्न चित्रकला की जाती है महत्व देता है इस चित्रकला में घर की सजावट जैसी घर के पेंटिंग जैसे देवी देवता के पेंटिंग राधा कृष्ण की पेंटिंग शिव की पेंटिंग पार्वती के पेंटिंग काली मां की पेंटिंग और अन्य प्रकार की पेंटिंग की जाती है जो घर की सजावट में चार चांद लगा देते हैं इस प्रकार के चित्रकला को गोसानी घर के सजावट करते हैं

और एक होता है कुंवर घर की सजावट आपको इस कला में देखने को मिलेंगे की खास कर घर के अंदर के सजावट में जैसे होते हैं अंदर जैसे नए दंपति शादी विवाह करने के बाद वह अपने घर आते हैं तो किस प्रकार से अपने परिवार को निर्वाह कर सकते हैं और कामना जैसे चित्र इत्यादि होते हैं
और तीसरा चित्रकला जिसका नाम कुंवर घर की कोनिया सजावट इस तरह होती है और एक प्राकृतिक का चित्र होता है जिसे कर करके कौन या सजावट करते हैं इस तरह के चित्र खासकर शादी ब्याह में ही बनाया जाता है यह एक प्रकार का सामाजिक मैसेज देता है की शादी के बाद अपने दंपति को कैसे निभाना चाहिए अपना जीवन सुख कर के इस क्षेत्र के अंदर आए तो अपने वैवाहिक जीवन को कैसे खुशहाली में जिए इसके लिए यह चित्र कई प्रकार के करता है और मैसेज देता है कि किस प्रकार से अपने जीवन को प्रभावित करें इसमें पशु पक्षी के अलग-अलग चित्र होते हैं जिनके अलग-अलग कोई महत्व होता है इसमें कुछ खास तरह से कीजिए दिखाए गए हैं जैसे की कला को मानसंता के रूप में दिखाया जाता है और मछली को काम उत्तेजना के रूप में दिख जात शेर को शक्ति के रूप में दिखाया जाता है और इसमें तोता को इनका काम वॉक के रूप में दिखाई जाता है हाथी और घोड़ा है इसको ऐश्वर्या के प्रतीक माना जाता है बस वृद्धि का प्रतीक माना जाता है कमल का पत्ता नजर आता है स्त्री के प्रजनन रहित का प्रतीक होता है हंस एवं में उनका शांति के प्रति माना जाता है और सूर्य और चंद्रमा दीर्घ जीवन के प्रतीक के रूप में जाना जाता है और कई सारे विशेषताएं होती हैं मधुबनी
मधुबनी चित्रकला –
यहां पर मिथिलांचल क्षेत्र के जैसे बिहार के दरभंगा के कुछक्षेत्रों पर भी,और मधुबनी एवं नेपाल के कुछ क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला में से एक माना जाता है।जैसे प्रारम्भ में रंगोली के रूप में रहने के बाद यह कला धीरे-धीरे आधुनिक रूप में कपड़ो, दीवारों एवं कागज पर उतर आई है। मिथिला की औरतों द्वारा शुरू की गई इस घरेलू चित्रकला को पुरुषों ने भी अपना लिया है। वर्तमान में मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया। उनकी ये पहल निःशुल्क अर्थात श्रमदान के रूप में किया गया। श्रमदान स्वरूप किये गए इस अदभुत कलाकृतियों को विदेशी पर्यटकों व सैनानियों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है।